संयुक्त कुटुंब के साथ मेरी प्यारी ज्ञानशाला
कंही पर भी जो काम इम्पॉसिबल होता है वो संयुक्त कुटुंब में पॉसिबल हो जाता है। मैं एक जैन फॅमिली से हूँ और मुझे जैन धर्म के बारे मैं और उसकी बुक्स पढ़ना अच्छा लगता है। मैंने काफी तेरापंथ धर्म की एग्जाम भी दी है। और मैं एक ज्ञानशाला की टीचर भी हूँ ।
मुझे हर रविवार 10 से 1 बजे तक पढाने जाना पड़ता है । ये हार्ड नहीं है, पर इजी भी नहीं है। जिसकी फॅमिली में 1 या 2 लोग हो और छोटे छोटे बच्चे हो वो ये काम आसानी से नहीं कर सकते । पर मैंने किया क्यों की मैं एक जॉइंट फॅमिली से हूँ । मेरी सासुमा और जेठानियों के सहयोग से मैं आगे बढ़ पाई। मेरे पति का पूरा सपोर्ट रहा तभी मैं जैन तत्व और कई एग्जाम दे पाई जिसमे मुझे कई घंटो तक पढ़ना पढ़ा था। जॉइंट फॅमिली मैं हूँ तो काम भी पूरा होता है पर मेरी जेठानियों का इतना सपोर्ट था की सारी एग्जाम कैसे दे दी पता ही नहीं चला । और सब मैं अवल आई । ये उन सब का आशीर्वाद है। अब मैं अपनी ज्ञानशाला के बारे मैं कुछ बताना चाहती हूँ । मेरे पुरे परिवार के बच्चे भी ज्ञानशाला जाते है ।
मेरी प्यारी ज्ञानशाला
कहा जाता है कि मनुष्य जीवन बहुत पुण्याई करने के बाद मिलता है जिसमे न जाने कितने वर्षो के तप-त्याग, धर्म-कर्म के संस्कार अच्छे जुडते है तब पुण्य का फल मिलता है। इसलिए इस किमती जीवन को और मूल्यवान बनाने का श्रेय हमारे गुरुओं को जाता है। अणुव्रत प्रणेता आचार्य श्री तुलसी का यह सुनहरा सपना जो उन्होंने देखा और आज वो साकार होकर हमारे सामने हैं। मनुष्य जीवन की चार अवस्थाएं होती है।
(1) नवजात (2) बाल्यवस्था (3) युवाअवस्था (4) वृद्धावस्था
इसमें सबसे मुख्य बचपन की अवस्था है जिसमें हमारा बचपन बीतता है। बच्चे की पहली शुरुवात वही से होती है। वो रूप एक कच्चे घड़े की तरह होता है जिसको जैसा रूप दिया जाता है वो उसी तरह का ढल जाता है। इस नींव को मजबूत करने का, उस घड़े को पक्का करने का काम हमारे गुरु तुलसीजी ने किया और आज वो काम इतना बढ़ा कि जिसकी कोई तह तक नहीं नाप सकेगा। इस आधार शिला का नाम रखा “ज्ञानशाला” ।
जो शालाओं में पढ़ाया जाता है वो ज्ञान किताबी ज्ञान हैं मगर ज्ञानशाला का ज्ञान उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को निखारने वाला है। उसमें वो आध्यात्मिक- ज्ञान दिया जाता है जो बच्चे के अन्दर अपने धर्म के संस्कारों के बीज वपन करता है जो आगे चलकर एक नई बुनियाद बनकर अपनी पहचान देता है। आज पूरे भारत वर्ष में ही नहीं विदेशों में जैन- ज्ञानशाला उपक्रम की कई शाखाएं फैली हुई है जो हर एक जैनी के मन मे जैन संस्कार कूट-कूट कर भर रही है कि वो किसी भी परिस्थिति में कही ढगमगाएं नहीं। इसी उपक्रम में मैं भी जुडी हुई हूँ।
अहमदाबाद नवरंगपुरा ज्ञानशाला
मैं अहमदाबाद नवरंगपुरा ज्ञानशाला की एक प्रशिक्षिका बनकर खड़ी हुई हूँ। मेरे को जो संस्कार बचपन में मिले उनका ससुराल में आकर विकास हुआ और मुझे मेरे घर वालों के सहयोग से ज्ञानशाला में अपना ज्ञानार्जन करने का सुनहरा अवसर मिला, वहाँ जाते हुये मुझे 9 साल हो गये हैं।
वहाँ मेरे सभी बच्चों ने अपने धर्म की उस धरोहर को जाना जो हमें गुरुओं के प्रताप से विरासत में मिली हैं। उन सभी ने अपने धर्म के सरोवर से भरी रत्नों की माला “नवकार महामंत्र” के जाप से, उपवास के तप से, मौन के गुण से, सहनशीलता, क्षमा के भूषण से, अहिंसा, सत्य अस्तेय, ब्रहमचर्य, अपरिग्रह ये पांच महाशक्तिशाली अनमोल रत्न के खजाने से, इन कल्पवृक्षिण तारों को अपने अन्दर समेट कर, संजोकर रख लिया जो एक श्रेष्ठ जीवन की आधारशिला है।
ज्ञानशाला में गुरु आचार्यश्री के सपने का साकार रूप है, तो 24 तीर्थकरों की आगम वाणी का सार, आर्य भिक्षु का सिद्धान्त, भगवान महावीर का समता और अनेकांत का उद्घोष, महाप्रज्ञ जी की प्रेक्षा पद्धति, महाश्रमण जी का गुरु नेतृत्व जो एक ऐसा वरदान है जो बिन मांगे ही हमें मिल गया। धन्य हुआ हमारा जीवन जो इन श्रद्धा की प्रतिमूर्तियो, साक्षात धरती पर उतरे ईश्वरीय अवतारों के आशिर्वाद को पाकर हम तो घर बैठे ही गंगा नहा कर पावन बन गये। बच्चों का यही घोष रहता है कि ज्ञानशाला हम जायेंगे, घर-घर ज्ञान की अलख जगायेंगे ।
ज्ञानशाला की वेश – भूषा
छोटे -2 बच्चे जो लड़के सफेद चोला-पायजामा, लडकियां सफेद सलवार-सूट फिर उस पर ज्ञानशाला का तीरंगा (हरा, सफेद नीला, पीलो, लाल) रंग का दुपटा पहनकर जाते है। हर रविवार, सुबह 10 से 12 बजे तक वहाँ जाके अपना ज्ञान प्राप्त करते है। प्रशिक्षिकाएं पीले रंग की साडी, ज्ञानशाला का चिन्ह बना बैग लेकर आती है।
व्यक्तित्व का विकास
ज्ञानशाला में वहाँ धार्मिक ज्ञान ही नहीं दिया जाता है अपितु वहाँ व्यक्तित्व के विकास के अनेक उपाय भी करवाये जाते है। जैसे, अनेक तरह के आसन, ताडासन, महाप्राण ध्वनि, सुखासन, इत्यादि , जिससे बच्चों के शारीरिक विकास के साथ 2 इनको हरतरह से तरोताजा बना के रख सकते हैं। इसी के साथ- अनेक तरह की प्रतियोगिताएं भी करवाई जाती है। धार्मिक प्रश्नोतर, क्विज़ , चित्रकला, रंगोली, धार्मिक चलचित्र, जो बच्चों के हुनर को निखारती है और उनको आगे आने का एक सही मार्ग दिखाती है।
इसी के साथ ही वार्षिक उत्सव भी मनाया जाता है, महावीर जयंती, दीपावली महावीर निर्वाण दिवस के रूप में, होली के त्याग- प्रत्याख्यान से रंग भरे जाते है। रक्षा बंधन में जगह-2 से आके पढने वाले बच्चे एक जगह मिलकर आपसी भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत बनाते है, संवत्सरी का पावन पर्व जो क्षमा लेने और देने का होता है साथ ही बच्चो को तपस्या, उपवास आदि की प्रेरणा देकर करवाया जाता है जो उनके कर्म निर्जरण में सहयोगी बनता है। साथ-2 बच्चों को उनके हौसले को बढ़ाने के लिए पुरुस्कृत भी किया जाता है जिससे बच्चों के मन में खुशी होती है और वो आगे कुछ नया करने की दिशा में कदम बढ़ाते है।
हर रोज सप्ताह का वो एक दिन बच्चों के इंतजार का दिन बन जाता है जहाँ से वो अपने नन्हे-2 कदमों से चलते है आगे बड़ा दरिया पार करने के लिए। बच्चे ही नहीं उनके माता-पिता भी उनके इस कार्य में पूरे सहयोगकर्ता बनते है। तथा बच्चा जो वहाँ सिखता है उसकी जानकारी जब अपने अभिभावको को देते है तो वो भी उनके साथ बच्चे बनकर वही सब करते है ।
माता पिता की व्यस्त जिंदगी में ज्ञानशाला का सहयोग
समय ऐसा भागदौड़ वाला है जहाँ माता-पिता को बच्चों के बारे में ज्यादा सोचने का समय ही नहीं मिलता क्यों कि सब अपनी जिन्दगी में व्यस्त है। उनको अपने सस्कारो की, बड़ो के सम्मान की, बुजुर्गो के बारे में, नित्य जप-तप, ध्यान की कोई खबर नहीं है।
जब उन्हीं का बच्चा ज्ञानशाला से जुड़ता हूँ और अपने माता पिता को अपने रूपरंग में रंगता है तब वो जानते है कि नहीं हमें अपने दिनकी शुरुवात नवकार मंत्र से करनी चाहिए। शरीर को स्वस्थ परहेज नही,हमारे आसन बनाते हैं। हमारा विकास अपने बड़ो के सुबह पैर छूने पर उनका आर्शिवाद मिलता है, तब होता है। सही दिनचर्या की शुरुआत अच्छी आदतो के साथ होती है। आज जब मांसाहारी खाना, मदु-शराब, तंबाकू आदि का व्यसन बहुत बढ गया है वही पर बच्चों को यह सिखाया जाता है कि लाल निशान वाली कोई पैकेट की वस्तु नहीं खानी चाहिए। अनेक कहानियों के माध्यम से उनको व्यसनमुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दी जाती है।
जो वो बच्चे स्वयं सीखते है और घर पर अपने Parents को भी सिखाते है की हमें ऐसा हमें नहीं करना चाहिए। इससे हमारे जीवन में जहरीला विष धूलता है, जो हमें मौत की कगार पर लाकर खड़ा कर देगा तब फिर जान गवाने के अलावा हमारे पास कुछ भी नहीं होगा। इस तरह जनवरी माह से शुरू ये ज्ञानशाला 12 महीने तक चलती है । हर वार-त्यौहार को धार्मिक धागे में गूँथ दिया जाता है जो सही वस्त्र बुनकर तैयार होता है। कहा जाता है कि गीली मिट्टी को जब दीवार पर फेंकते है तो वोउस पर चिपक जाती है, और सूखी मिट्टी झड़कर गिर जाती है।
इसी तरह हमारा गीली मिट्टी जैसा बचपन होता है जिसको हम अपनी मजबूत गुरू संस्कारो से लिप्त दीवार पर चढ़ाते हे तो वो चढ़ते ही जाते है और उसमें लिप्त हो जाते है। एक नींव बनकर वो स्वस्थ समाज के स्वस्थ व्यक्ति बनकर सामने आते है। गुरु ज्ञान का सागर है तो शिष्य उस सागर में तैरने वाले तैराक। बस कोशिश हमें करनी है कि वो कुशल तैराक बनकर पहले संसार को और अन्त में अपने लक्ष्य मोक्ष परमाप्त पद को प्राप्त करे।
ज्ञान की उत्कृष्ठता, भाषा का सौष्ठव, वाणी की मधुरता, उच्चारण में शुद्ता, रहने में सादगी, जीने में सरलता, आचरण में बड़ापन, देने में दातारी, हदय में करुणा, हाथो में उदारता, चलने में शालीनता, खाने में सात्विकता, जिसने bhi इन सभी गुणों को अपना लियातो वो इंसान तो इस भव को क्या न जाने सैकडो भवो को पारकर सिद्ध पदवी को पा लेगा। यही धरोहर दी जाती है हमारी ज्ञानशाला में।
हमारा यही प्रयत्न है कि जो बच्चे इससे जुड़े वो तो अच्छा है मगर जो इस सब से अभी वंचित है वो इससे शीघ्र जुड़ जाये तो देखेंगे हमारा जीवन कितना निखर जायेगा। इसमें बच्चों के साथ–माता-पिता की भी भूमिका महान बनती है जिनके प्रयत्न से वो आगे बढ़ते हैं। हमे गुरुरुदेव के सपने को सातवे आसमान तक पहुँचाना है। हर घर के हर बच्चे को ज्ञानशाला जाना है। ज्ञान को पाकर एक जैनी बनकर जैनत्व के संस्कारो को पाकर अपना फर्ज निभाना है तभी हमारी ज्ञानशाला की ज्ञान गुणवता सार्थक साबित होगी।
“घर-घर जागे सदसंस्कार, ज्ञानशाला का यह उपहार”
जय जय महाश्रमण
आप को मेरा ये ब्लॉग कैसा लगा जरूर कमेंट करे ।
Bahot hi ache vichar
Nice vlog
Thanku
बहुत ही सुंदर विचार ज्ञान साला के बारे में आपने इतने सुंदर विचारों का संकलन किया है साधुवाद के पात्र और बाक़ी सब ज्ञान सालों के लिए यह लेख प्रेरणादायी है
Thanku itna acha likhne ke liye
Very awesome words 👏
Om araham bahut sundar
Om arham bhut sunder vichar hai