” शीतला सप्तमी “
बैद फॅमिली के साथ शीतला सप्तमी
आज में फिर बैद फॅमिली के एक नए फेस्टिवल को लेकर आई हूँ ” शीतला सप्तमी ” ये परिवार ने बहोत धूम धाम से मनाया। ये त्यौहार क्या है , इसका क्या महत्व है सारी बाते इस ब्लॉग में पढ़ने को मिलेगी।
कहा जाता है कि दीवाली की सफाई के साथ एक बार सारे त्यौहारो को भी आराम मिल जाता है लेकिन जब होली आती है तो सारे त्यौहारो को अपने साथ-साथ ले के आती है। हमारी भारतीय संस्कृति में हर एक त्यौहार का अपना प्रभुत्व है अपनी महत्ता है। इसीलिए यह संस्कृति विश्वमान्य कहलाती हैं। होली के ठीक सात दिन बाद “शीतला-सप्तमी” का त्यौहार मनाया जाता है। इसदिन पहले दिन ही मां शीतला का ठंडा प्रसाद बनाया जाता है। मेरे घर में अनगिनत व्यंजन बने थे । घर में सब बहन बेटियां आई थी। बहोत मज़े किये सब ने।
शीतला माता के प्रसाद की विशेषता
पहले दिन ही “मां शीतला ” का ठंडा प्रसाद बनाया जाता है। जिसमें नौ नेवज’ (नौ तरह के पकवान) बना कर मां को भोग लगाया जाता है। सुहागिन औरतें हाथों में मेहंदी लगाती है, लाल-कसूमल जीस पर जरी लगी तारो जूही चमचमाती साड़ियों पहनती है, सोलह श्रृंगार करके तैयार होती है। और जब सातम वाले दिन मां शीतला को भी इसी तरह तैयार किया जाता है, ठंडा प्रसाद चढ़ाया जाता है, पानी के पड़े डाले जाते है ताकि सब ठंडे-ठंड रहे।
यह परंपरा पहले हमारी मम्मी-दादी से चली और आज हमारी सासुजी से लेकर पोते की – बहुओ तक बरकरार हैं। शायद इसके पीछे भी कुछ छिपा हुआ है जो हमारे लिए अच्छा है। कभी-2 बच्चों के सवाल ऐसे होते है कि हम ये सब परंपराएं क्यों दोहराते हैं? तब उनको समझाने का हमारा एक फर्ज बनता है कि वो भी अपनी रीति-रिवाजको समझे। कोई सवाल बिना जबाब के ऐसे ही नहीं खड़ा हो ‘जाता है ‘ उसके पीछे भी कुछ होता अनकहा जो आज कहा जाना बहुत जरूरी हो गया है।
बासी खाने का महत्व
आज के दौर में जब सब ताज़ा फ्रेश खाना चाहते है, अकेले रहकर खाना-जीना चाहते हैं वह हमें उनकी उस मानसिकता को बदला होगा। “मां शीतला’ का त्यौहार का भोग जो भले पहले दिन का ठंडा हो मगर उसे अगर आज हमारी वैज्ञानिक पद्धति से भी देखे तो हमारे लिए वरदान है। कहा जाता है कि जब रत की बासी रोटी खाते है तो उसमे सबसे ज्यादा बैक्टीरिया से लड़ने की शक्ति – होती है जो हमारी पाचन शक्ति को मजबूत बनाती है। गुड का हलवा हमारी खांसी गले को ठीक करता है और राब जो हम पीते हैं लो हमारे शरीर में ठंडी-ताजा स्फूर्ति भरदेता है। तो बताओ. हमारा फ्रॉड -फैश फूड’ अच्छा या हमारी मां का प्रसाद’।
जहाँ हम अकेल रहकर खाते है वहीं इसदिन सब बहन- बेटियां अपने पिहर आती है, आस पडोस की औरते मिलकर मंगलगीत गाती है तथा सब मिलकर खूब आनन्द, मौज मनाके इसका मजा लेते है। जिससे हमारा पूरा दिन हंसते-खेलते कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। इसीलिए हर त्यौहार का जहाँ अपना महत्त्व ही वही सबको साथ लेकर चलने का सबसे दिल मिलकर रहने का रिश्तो को संजोकर रखने की, …आपसी प्रेम बढ़ाने का यह एक ऐसा रेशमी- सूत है जो सबको बाधे रखता है।
कहा जाता है कि झुकने से कमर दर्द नहीं, होता, दोस्तो यह हमारी विनय शीलता को प्रदर्शित करता है – न जाने कितनों के मौन आशिर्वाद मिलते है जो हमारा कषभल करके हमे फला-फूला देते है एक जादू सा बन जाता है।
इसीलिए यही दुआ है, यही पार्थना, यही सही सलाह, यही राय की डोर तो चालू थी चली आ रही थी, मगर · उसको पकड़कर जब थाम लिया तो वो बंधन मजबूत बन गया . इसी कड़ी में आज हम हमारी नई पीढ़ी, जो हमारे बुजुर्गो ने चलाई है उससे जुड़े और निभाये तो देखो जिन्दगी कितनी खुशहाली बन जायेगी और हमारी धरोहर बने ये हमारे चमत्कारी त्यौहार हमारे जीवन में चार-चांद लगा देगे।
शीतला माता की कहानी
इसके पीछे भी कितना बड़ा चमत्कारी रहस्य छुपा है इसको मैं एक कहानी के माध्यम से बताती हूँ। एक बार “शीतला माता” राजस्थान के डूंगरी गांव में गई कि इस धरती पर कौन मेरी पूजा – अर्चना करता है। तो उन्होंने अपना एक बूढ़ी मईया का रूप धारण कर लिया। वो सारे गांव में घूमने लगी किसी ने उन्हें कुछ नहीं पूछा एक घर के बाहर से जब गुजर रही थी तो अचानक उस घर की स्वामीनि ने उनके ऊपर चावल का उबलता पानी डाल दिया। वो गरम पानी से उनके सारे शरीर पर फफोले उपड़ गये। किसी ने उनकी पीड़ा दूर नहीं कि चलते- एक कुमारिन जो घड़े बनाती है वो अपनी झोपडी के बाहर बैठी थी।
बूढ़ी माई जो दर्द से तड़प रही थी उसको देखकर वो बोली आप रो क्यों रही है तब माता ने अपनी सारी बात बताई तो कुमारिन बोली माई आप मेरे पास यहाँ आके बैठ जाओ और उसने माई के शरीर पर एक मटके का ठंडा-2 जल डाल दिया। इससे बूढी माई के शरीर को शीतलता मिली। फिर उसने माई को खाने के लिए कहा कि मेरे पास तो कल रात की बची ठंडी घर में दही-राबड़ी है आप वो खा कर अपनी भूख शांत करे।
फिर माईने वो खा ली। फिर उसने कुमारिन से कहा कि बेटी मेरे सर में देखतो जुऐ हो गई है क्या तो उसने बूढी माई के माथे में हाथ फेरा तो देखा कि उसके पीछे तो एक आंख और हैं। वे डर कर भागने लगी। तब माँ ने कहा बेटी डर मत में कोई भूत- पिशाच नहीं हूँ मैं तो शीतला माता है। और धरती पर देखने आई थी कि कौन मेरी मान्यता मानता है।
कुमारिन ने हाथ जोड़कर कहा मैया मेरे घर में तो चारो तरफ दरिद्रता के पैर जमे हैं। इसपर मैं आपको कहा बैठने को कंहू ? तब शीतला मा ने उसके घर के बाहू- खडे गधे पर अपना आसन जमा दिया और हाथ में झाडू लेकर उसकी झोपडी की सारी दुरिता रूपी गंदगी डलियां में भरकर बाहर फ़ेंक दी। उस लड़की से बोली मै तेरी भक्ति भावना से बहुत प्रसन हुई हूँ बोल तुझे क्या चाहिए। तब वो लड़की बोली माता आप हमेशा के लिए इस गांव में स्थित हो जाये क्योंकि आपका यहाँ कोई मंदिर नहीं हैं। आपने जैसे मेरी दरिद्रता दूर की वैसे ही मेरे सारे गाव वासियों की कर दो।
तब “शीतलl मां ” ने उसको तथास्तु कहा और कहा कि इस करपे में जो ठंडा जल है वो तुम अपनी झोपड़ी के चारो ओर छिड़क लेना जब कल सारे गांव में आग लगेगी तब तेरी झोपड़ी नहीं जलेगी। यह कह कर माता अन्तर्ध्यान – हो गई। फिर दूसरे दिन जैसा मां ने कहा पूरा गांव जलने लगा बस कुमारिन की झोपड़ी नहीं जली। तब राजा ने उसको बुलाया और पूछा कि ऐसा तुमने क्या जादू मंत्र पढ़ा है कि तेरी झोपडी ही नहीं जली। तब वह बोली यह कोई जादू-टोना नहीं है “माँ शीतला” का चमत्कार है और उसने जो सारी घटना घटी वो राजा और सबको सूना दी।
तब राजा ने हाथ जोड़कर मा को नमस्कार किया और गांव में सभी से यह फेरी के बुलवा दी कि आज से सब के घर शीतला अष्टमी को दिन किसी के घर चुला नहीं जलेगा। सब सप्तमी के दिन मां का प्रसाद रूप ठंडी- राबड़ी -रोटी और ठंडे जल का करवा भरकर दूसरे दिन मां की पूजा करके वही रवायेंगे।इस तरह देखा जैसे मां की भक्ति-भावना बिना किसी लोभ-लालच के उस कुमारिन ने निस्वार्थ भाव से कि तो उसके घर की सारी गरीबी दूर हो गई और उसके सुखी जीवन में धन-सम्पती की बौछार हो गई मां की कृपा से ।
इसलिए इससे हमें भी यही सीख मिली कि जहाँ ईश्वरीय शक्ति वरदायनी होती है वहीं इंसानियत का उसूल भी बहुत बड़ा होता है जिसमें हमें हमेशा सब पर-सेवा भावना, गरीबी अमीरी, के भेद को मिटाकर तहे दिल से करनी चाहिए तभी वो अनजाने का चमत्कार हमारे जीवन में सुख-समृद्धि, अनजानी मन की शांति और परिवार में आपसी संगठन बरकरार रह सकता है। जो हमें गुट वरदान के रूप में मिल जाता है।
आप ये देख सकते है की आज भी ये परिवार कितने पुराने रीती रिवाज मानता है । तभी भगवान की कृपा यंहा हमेशा बानी रहती है । आज के युथ को ये जानना बहोत जरुरी है ।
आप को ये ब्लॉग कैसा लगा प्लीज कमेंट करके जरूर बताये ।
धन्यवाद ।
Bahut hi mast
Thanku
Hello Santosh Ji, bahut hi achhe vichaar hn aapke. Bahut achha laga Photos and Videos Dekh ke. Aur aisi posts laiye and aage badhte jaiye.
Thanku
Well Written Santosh boht hi Acha likha hain. Padhke Mann me boht acha laga. Asha karti hun hum sab aise hi sath rhein aur yeh parivaar aur iske saath sare tyohaar aise hi manaate rhein.
Thanku Maidam mera blog likne ka resion hi bhikri hui family ko ek karna hai.
Well Written Santosh boht hi Acha likha hain. Padhke Mann me boht acha laga. Asha karti hun hum sab aise hi sath rhein aur yeh parivaar aur iske saath sare tyohaar aise hi manaate rhein.
Thank you for sharing the information . Very useful .
Thanku
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