सह-परिवार के साथ “नवरात्री”
भारतीय संस्कृति में नवरात्री त्यौहार का अपना महत्व है। यहाँ हर एक देवी-देवताओं को अपना एक महत्व दिया जाता है। नारी स्त्री शक्ति का रूप होती है कहा जाता है कि,
“‘यत्र नायक नायरस पूज्यते, रमते तत्र देवता”
इसी परंपरा में हमारे नवरात्री पर्व में माँ अम्बे गौरीको माता मानकर उनकी आराधना की जाती है। पूरे वर्ष का समापन और नववर्ष की शुरुआत होती है हमारे चैत्र नवरातों में।
नवरात्री के बारे में जानकारी
वर्ष में दो बार प्रत्यक्ष रूप से और दो बार गुप्त नवरात्रे मनाये जाते हैं। एक बार चैत्र में और दूसरी बार आसोज में। चैत्र में आठ दिन का होता है और आसोज में नौ दिन मा के अलग-2 रूपों की भक्ति भावना होती हैं। नवरात्री का यह चैत्र माह के 9 तारीख को इसबार मनाया जा रहा है। ये आठ दिन मां की उपासना के दिन हैं।
मां की भक्ति की जाती हैं। पूजा-आराधना, भजन, कीर्तन किया जाता है। लोग नवरात्री के नौ दिन व्रत रखते हैं। उस व्रत का भी अपना एक महत्व है व्रत केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं रखा जाता इसका एक वैज्ञानिक कारण भी हैं। व्रत रखने से शारीरिक, मानसिक, धार्मिक लाभ तो है ही साथ ही इससे तन, मन, और आत्मा की शुद्धि भी होती है। यह प्रकृति का नियम है कि हर ऋतु में वो अपना प्रभाव दिखाती हैं। इसी से जुड़े है हमारे चैत्र और आसोज का माह जब मौसम के साथ-साथ हमारे शरीर पर भी इसका असर पड़ता है। व्रत से मनोकामना तो पूरी होती ही है साथ ही शरीर का शारीरिक स्वास्थ्य भी स्वस्थ बनता है
नवरात्री में माँ के नौ रूप
नवरात्री के ये नो दिन हर एक दिन अलग-2 देवी की पूजा स्तुति का दिन होता है। ये नौ रूप मां की नवरात्री में एक- एक दिन देखने को मिलते हैं।
पहली शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कूष्मांडा, पांचवी स्कंध माता, छठी कात्यायिनी, सातवीं कालरात्रि, आठवीं महागौरी और नौवीं सिद्धिदात्री।
नवरात्री का यह त्यौहार मेरे घर में बड़ों जोरो शोरो से मनाया जाता हैं। हमारी कुल देवी ओसियां धीरांनी मां सच्चिया माता जी’ है। नवरात्री में हम सब माँ को नौ दिन खूब लाड-चाव से मनाते है। भजन-कीर्तन गाते हैं। मां का खूब श्रृंगार किया जाता है। लाल चुनड़ी, रोली-मोली, मेहंदी, काजल, बिंदी, चूड़ी से माँ को सजाकर एक नया सलोना मनभावन रूप बनाया जाता है जो हमारी मां के प्रति सच्ची भक्ति को प्रकट करता है। सब लोग माँ के भजन गाते है। श्याम को माँ की पूजा अर्चना के बाद सब छोटे बड़ो के पैर छूते है। माँ का आशीर्वाद और साथ में बड़ो का भी आशीर्वाद मिलता है।
नवरात्री सह-परिवार मिलकर कैसे पूजा करते है
नवरात्री से पहले दिन ही हम सब हाथों में मेहंदी लगा लेते हैं, नये वस्त्र पहनते हैं। जब नवरात्रे प्रारंभ होते हैं चैत्र शुक्ला एकम के दिन तब हम सबसे पहले मां की प्राण- प्रतिस्ठा करते है। मां के सामने नव दीप जलाया जाता है, नये वस्त्र मा को पहनाये जाते है रोली से मां के नौ दिन की नौ बिंदियां निकाली जाती हैं। मां का त्रिशुल खिंचा जाता है। फिर धूप-दीप जला कर माँ के दर में चार-चांद लगाये जाते हैं।
इस दिन घर के सभी सदस्य उपवास करते है। जिसमें कोई सिर्फ फलाहार लेके करते है तो कोई एक समय खाना खाकर करते हैं। मां को मनाने का, रिझाने का, प्रसन्न करने का सब काम सब अपने तन-मन से श्रद्धा भावना के साथ करते हैं।
नवरात्री का भोजन
नवरात्री में हम शुद्ध-सात्विक, आहार करते हैं। माँ को लापसी, नारियल, सींग भोग लगाया जाता है। बाहर की सब असात्विक वस्तुए नवरात्री में निषेध बताई है। बालो का काटना, नाखून का काटना, नये वस्त्र लेना, काली चीज न पहनना ये सब नवरात्री में नहीं करनी चाहिए। नौ दिन नवरात्री में सिर्फ मां को रिझाने की पूरी तन-मन-धन से कोशिश की जाती है।
कहीं तो घट-स्थापना भी पहले दिन की जाती है। जिसमें मिट्टी का एक करवा लिया जाता है फिर उसमे गेंहू को बोया जाता है। पहले दिन से नौ दिन तक उसमें जल सिंचा जाता है। जब दसवे दिन मां की पूजा के ‘अनुसार वो गेंहू का पौधा जिसे ज्वारा कहा जाता है। सुबह उन ज्वारों को अपनी तिजोरी में लाल वस्त्र में लपेट कर रखते है जिससे कि मां हमारे धन-सम्पति के भंडार भरे। वो ज्वारा का कुछ भाग हमारी धान की कोठियों में डाला जाता है की ताकि मां अन्न-जल का भंडार भरे रखे।
नवरात्री में ज्वारों का महत्व
ज्वारों को स्वास्थ्य के लिए भी बहोत पौष्ठिका माना गया हैं। इसको पीने से लिवर की सारी बीमारियां दूर हो जाती है। माँ का यह प्रत्यक्ष चमत्कार होता है कि हमे बिन मांगे ही सब कुछ मिल जाता है। जब माँ का नवां दिन आता है तब घर मे सभी बहन-बेटियों को बुलाया जाता है।
मां का जो महा प्रसाद बनता है उसमे सभी को सरोबोर किया जाता है। व्रतकी समाप्ति पर नौ कन्याओं को भी खाना खिलाया जाता है। उनके पैर छूये जाते है, पैरो को धोया जाता है, उनके कुमकुम का तिलक लगाया जाता है, आसन पर बैठाकर खाना खिलाया जाता है। उनको सोलह-श्रृंगार की सभी सामग्री दी जाती है। मां का प्रसाद, नगद रुपय भी दिये जाते है।
इसतरह चैत्र और आसोज इन दो माह में नौ दिन तक मां के नवरात्री त्योहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते है। जैसी-जिसकी भावना, वैसे उसके फूल
माँ तो अन्तर्यामी है आंख बंद करके भी सब कुछ देख लेती है। इसलिए हमें जैसा रूप बाहर रखा है, वैसी ही भावना सच्ची मन में रखनी हैं। मां तो भावना की भूखी हैं। दीप जलाकर दिया जलाकर उजाला करने से घर मंदिर में रोशनी होती है, वहीं रोशनी हमारे जीवन में भी प्रकाश की किरणे बिखेर दे यही माँ से आशीर्वाद चाहते है।
आजके समय में जब सब अपनी सेहत का ध्यान करते है, कोई डाइट करके है उसमें तो हमे बहुत परहेज रखना पडता है मगर माँ के व्रत में तो इतनी शक्ति होती है कि वो हमें बिन मांगे भरपेट खिला देती है। इतनी माँ की चमत्कारी – शक्ति है जो हमें उनके चमत्कार से खुशी समृद्ध बना देती हैं। हम यही चाहते है कि मां की कृपा दृष्टि हम सब पर सदा बनी रही।
..” या देवी सर्व भूतेषु, शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्ते नमस्ते, नमस्ते, नमो नमः “
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Jai mata di